मोर छइयां भुइयां के माटी
मोर छइयां भुइयां के माटी रे संगी महर.महर ममहाथे न, गंगाजल कस पावन धारा महानदी ह बोहाथे न । मोर छइयां भुइयां के माटी रे संगी महर.महर ममहाथे न ।। धान कटोरा हे मोर भुइयां ये हीरा मोती उगलथे रे, अरपा,...
View Articleगरमी के दिन आगे
गरमी के दिन आगे संगी , मचगे हाहाकार । तरिया नदियाँ सबो सुखागे , टुटगे पानी धार ।। चिरई चिरगुन भटकत अब्बड़ , खोजत हावय छाँव । डारा पाना जम्मो झरगे , काँहा पावँव ठाँव ।। तीपत अब्बड़ धरती दाई , जरथे चटचट...
View Articleजिनगी जरत हे तोर मया के खातिर
जिनगी अबिरथा होगे रे संगवारी सुना घर – अंगना भात के अंधना सुखागे जबले तै छोड़े मोर घर -अंगना छेरी – पठरू ,घर कुरिया खेती – खार खोल – दुवार कछु नई सुहावे तोर बोली ,भाखा गुनासी आथे का मोर ले होगे गलती...
View Articleमोर छत्तीसगढ़ महतारी
जिहां खिले-फुले धान, सुग्घर खेत अउ खलिहान। देवी-देवता के हे तीर्थ धाम, कहिथे ग इहां के किसान। मोर छत्तीसगढ़ महतारी, हे ग महान…….! दुख पीरा के हमर दुर करइया, हरय हमर छत्तीसगढ़ मइया। हरियर-हरियर हे दाई...
View Articleखेती किसानी
बादर गरजे बिजली चमके , गिरय झमाझम पानी । सबके मन हा हुलसत हावय , करबो खेती किसानी ।। खातू कचरा फेंकय सबझन , नाँगर ला सिरजाये । काँटा खूँटी साफ करय सब , मेड़ पार बनवाये ।। चूहत रहिथे परछी अब्बड़ , छावय...
View Articleददा
बर कस रूख होथे ददा जेकर जुड छांव म रथे परवार बइद बरोबर जतनथे नइ संचरन दे कोनो अजार। चिरई-चुरगुन कस दाना खोजत को जनी कतका भटकथे माथ ले पसीना चुहथे त परवार के मुंहु म कौंरा अमरथे। परवार के जतन करे बर अपन...
View Articleसक
‘‘मोर सोना मालिक, पैलगी पहुॅचै जी। तुमन ठीक हौ जी? अउ हमर दादू ह? मोला माफ करहौ जी, नइ कहौं अब तुंह ल? अइसन कपड़ा,अइसे पहिने करौ। कुछ नइ कहौं जी, कुछ नइ देखौं जी अब, कुछू नइ देखे सकौं जी, कुछूच नहीं,...
View Articleसेल्फी के चक्कर
सेल्फी ले के चक्कर में , दूध जलगे भगोना में। सास हा खोजत हे अब्बड़, बहू लुकाय कोना में । आ के धर लिस चुपचाप सास हा हाथ, बहू हा देखके खड़े होगे चुपचाप । घर दुवार के नइहे कोनो कदर , मइके से ला हस का दूध...
View Articleसरकारी इसकूल
लोगन भटकथें सरकारी पद पाए बर, खोजत रहिथें सरकारी योजना/सुविधा के लाभ उठाए बर, फेर परहेज काबर हे, सरकारी इसकूल, अस्पताल ले? सबले पहिली, फोकट समझ के दाई ददा के सुस्ती, उप्पर ले, गुरुजी मन उपर कुछ काम...
View Articleमाटी के काया
माटी के काया ल आखिर माटी म मिल जाना हे। जिनगी के का भरोसा,कब सांस डोरी टूट जाना हे। सांस चलत ले तोर मोर सब,जम्मो रिश्ता नाता हे। यम के दुवारी म जीव ल अकेला चलते जाना हे। धन दोगानी इंहे रही जही,मन ल बस...
View Articleकपड़ा
कतका सुघ्घर दिखथे वोहा अहा! नान-नान कपड़ा मं। पूरा कपड़ा मं, अउ कतका सुघ्घर दिखतीस? अहा!! केजवा राम साहू ‘तेजनाथ‘ बरदुली,कबीरधाम (छ.ग. ) 7999385846 The post <span>कपड़ा</span> appeared first...
View Articleकुछ तो बनव
आज अंधियारी म बितगे भले, त अवइया उज्जर कल बनव। सांगर मोंगर देहें पांव हे, त कोनो निरबल के बल बनव। पियासे बर तरिया नी बनव, त कम से कम नानुक नल बनव। रूख बने बर छाती नीहे, त गुरतुर अउ मीठ फल बनव। अंगरा...
View Articleसुरता
गिनती, पहाड़ा, सियाही, दवात पट्टी, पेंसल, घंटी के अवाज स्कूल के पराथना, तांत के झोला दलिया, बोरिंग सुरता हे मोला। बारहखड़ी, घुटना अउ रुल के मार मोगली के अगोरावाला एतवार चउंक के बजरंग, तरियापार के भोला...
View Articleसावन के झूला
सावन के झूला झूले मा , अब्बड़ मजा आवत हे। सबो संगवारी मिलके जी ,सावन के गीत गावत हे।। हंसी ठिठोली अब्बड़ करत , झूला मा बइठे हे। पेड़ मा बांधे हाबे जी , डोरी ला कसके अइठे हे।। दू सखी हा बइठे हे जी , दू...
View Articleतयं काबर रिसाये रे बादर
तयं काबर रिसाये रे बादर तरसत हे हरियाली सूखत हे धरती, अब नई दिखे कमरा,खुमरी, बरसाती I नदियाँ, नरवा, तरिया सुक्खा सुक्खा, खेत परे दनगरा मेंड़ हे जुच्छा I गाँव के गली परगे सुन्ना सुन्ना, नई दिखे अब मेचका...
View Articleहरेली तिहार आवत हे
हरियर-हरियर खेत खार, सुग्घर अब लहरावत हे। किसान के मन मा खुशी छागे, अब हरेली तिहार आवत हे।। खेत खार हा झुमत गावत, सुग्घर पुरवाही चलावत हे। छलकत हावे तरीया डबरी, नदिया नरवा कलकलावत हे।। रंग बिरंग के फूल...
View Articleउत्ती के बेरा
कविता, झन ले ये गाँव के नाव, ठलहा बर गोठ, हद करथे बिलई, बिजली, चटकारा, बस्तरिहा, अंतस के पीरा, संस्कृति, तोला छत्तीसगढी, आथे!, फेसन, कतका सुग्घर बिदा, गणेश मढाओ योजना, बेटा के बलवा, बाई के मया,...
View Articleकविता : वा रे मनखे
वा रे मनखे रूख रई नदिया नरवा सबो ल खा डरे रूपिया- पैसा धन-दोगानी, चांदी-सोना सबो ल पा डरे जीव-जंतु, कीरा-मकोरा सब के हक ल मारत हस आंखी नटेरे घेरी बेरी ऊपर कोती ल ताकत हस पानी नी गीरत हे त तोला जियानत...
View Articleकविता: कुल्हड़ म चाय
जबले फैसन के जमाना के धुंध लगिस हे कसम से चाय के सुवारद ह बिगडिस हे अब डिजिटल होगे रे जमाना चिट्ठी के पढोईया नंदागे गांव ह घलो बिगड़ गे जेती देखबे ओती डिस्पोजल ह छागे कुनहुन गोरस के पियैया “साहिल” घलो...
View Articleशिव शंकर
शिव शंकर ला मान लव , महिमा एकर जान लव । सबके दुख ला टार थे , जेहा येला मान थे ।। काँवर धर के जाव जी , बम बम बोल लगाव जी । किरपा ओकर पाव जी , पानी खूब चढ़ाव जी ।। तिरशुल धर थे हाथ में , चंदा चमके माथ...
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