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Channel: कविता – gurtur goth
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सबो नंदागे

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कउवा के काँव काँव।
पठउंहा के ठउर छाँव।
भुर्री आगी के ताव।
सबो नदागे।।

खुमरी के ओढ़इ।
कथरी के सिलइ।
ढेकना के चबइ।
सबो नदागे।।

हरेली के गेड़ी चढ़इ।
रतिहा म कंडील जलइ।
कागज के डोंगा चलइ।
सबो नदागे।।

नांगर म खेत जोतइ।
बेलन म धान मिंजइ
पइसा बर सीला बिनइ।
सबो नदागे।।

ममा दाई के कहानी किस्सा।
संगवारी संग खेलइ तीरी पासा।
मनोरंजन के गम्मत नाचा।
सबो नदागे।।

रेडियो के समाचार सुनइ।
सगा ल चिट्ठी लिखइ।
सिलहट पट्टी म लिखइ-पढ़इ।
सबो नदागे।।

टेंड़ा म पानी पलोइ।
ढेंकी म धान कुटइ।
जाँता म पिसान पिसइ।
सबो नदागे।।

चंदन वर्मा
ग्राम- करमा (भैंसा),
थाना- खरोरा,
जिला – रायपुर (छ. ग.)

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माटी के मया

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अब तो नइ दिखय ग,
धान के लुवइया।
कहाँ लुकागे संगी,
सीला के बिनइया।
दउरी,बेलन ले,
मुँह झन मोड़व रे…..।
माटी संग माटी के,
मया ल जोड़व रे…..।।
बोजहा के बंधइया,
अब कहाँ लुकागे।
अरा-तता के बोली,
सिरतोन नदागे।
गाडा़, बइला के संग ल,
झन तुमन छोड़व रे…..।
माटी संग माटी के,
मया ल जोड़व रे…..।।
होवत मुंधरहा संगी,
पयरा के फेकइ।
आज घलो सुरता आथे,
बियारा के सुतइ।
धर के कलारी,
पयरा ल कोड़व रे…..।
माटी संग माटी के,
मया ल जोड़व रे…..।।

केशव पाल
मढ़ी (बंजारी) सारागांव,
रायपुर (छ.ग.)
9165973868

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राजिम नगरी

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पबरीत हावे राजिम नगरी,
परयाग राज कहलाऐ।
बिच नदीया में कुलेश्वर बईठे,
तोरेच महीमा गाऐ।।

महानदी अऊ पईरी सोंढ़हू,
कल-कल धारा बोहाऐ।
तीनों नदीया के मिलन होगे,
तीरबेनी संगम कहाऐ।।

ब्रम्हा बिष्णु अऊ शिव संकर,
सरग ऊपर ले झांके।
बेलाही घाट में लोमश रिषी,
सुग्घर धुनी रमाऐ।।

राजिव लोचन तोर कोरा मं बईठे,
सुग्घर रूप सजाऐ।
राजिम के दुलौरिन करमा दाई,
तोर कोरा मं मांथ नवांऐ।।

राम लखन अऊ सिया जानकी,
तोर दरश करे बर आऐ।
वीर सपूत बजरंग बली,
तोरे चवंर डोलाऐ।।

तोर चरण मं कलम धरके,
गोकुल महीमि बखाने।
आसिस देदे तैंहर मोला,
सुग्घर तोला गोहराऐ।।

पबरीत हावे राजिम नगरी,
पदमावती कहलाऐ।
बीच नदीया मं कुलेश्वर बईठे,
तोरेच महीमा गाऐ।।

गोकुल राम साहू
धुरसा-राजिम (घटारानी)
जिला-गरियाबंद (छतीसगढ़)
मों.9009047156

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दारू के गोठ

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जेती देखबे तेती, का माहोल बनत हे।
सबो कोती ,मुरगा दारू के गोठ चलत हे।।

थइली म नइहे फूटी कउड़ी,अउ पारटी मनाही।
चांउर ल बेंच के, दारू अउ कुकरी मंगाही।।

मुरगा संग दारू ह,आजकाल के खातिरदारी हे।
खीर पूड़ी के अब, नइ कोनो पुछाड़ी हे।।

दारू के चक्कर म, छोटे बड़े के नाता ल भुलागे।
आधा मारबे का कका,कइके मंगलू ह ओधियागे।।

नंगत कमाय हे कइके, बेटा बर लानत हे ददा ह।
अब तो संगे संग म पीयत हे, कका अउ बबा ह।।

होवत संझाती भट्ठी म, भारी भीड़ दिखत हे।
अंगरेजी ल छोड़के सबो, देसी के तीर दिखत हे।

अब झन करव गा कोनो, मुरगा-दारू के गोठ ल।
सादा जीवन ऊंचा बिचार के, बनावव अपन सोच ल।।

चंदन वर्मा
करमा (भैंसा)
खरोरा
जिला – रायपुर (छ. ग.)
मो. 8120274719

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मनखे गंवागे

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मनखे गंवागे गांव के शहर के देखाईं म
गांव भुलागे स्वारथ के अंधियारी खाईं म।।

इरिषा अनदेखना बाढ़ गे
डाह धरिस हितवाही म।
पिरीत परेम के दिया बुतागे,
आग लगिस रुख राई म।

खेत खार ह परिया होगे
यूरिया के छिचाई म
मनखे गंवागे शहर म जाके
अंधाधुंध कमाई म।

पहुना के सम्मान गंवागे
नारी के अधिकार लुटागे।
नदिया तरिया के गुरतुर पानी
भाखा के मिठास गंवागे।

पुरखा के संस्कार गंवागे
अंगना के बंटवाई म
संगी मितान के विश्वाश गंवागे
भेद के दहरा खाइ म

मेला मड़ई के झुला गवांगे
शहर के डिस्को नचाइ म

मनखे गंवागे गांव के शहर के
देखाईं म,
बिक़त हवय ईमान जहां
झूठ के अंधियारी खाई म।

अवि अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा 495668
Mo. 8224043737

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मोर छत्तीसगढ़ के माटी

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गुरतुर हावय गोठ इहाँ के,
अऊ सुघ्घर हावय बोली।
लइका मन ह करथे जी,
सबो संग हँसी-ठिठोली।।‍
फुरसद के बेरा में इहाँ,
संघरा बइठे बबा- नाती।
महर-म‌हर ममहाये वो,
मोर छत्तीसगढ़ के माटी।।

बड़े बिहनिया ले संगी,
बासी ह बड़ सुहाथे।
आनी-बानी नी भावय,
चटनी संग बने मिठाथे।।
ईज्जा-पिज्जा इहाँ कहां,
तैहा पाबे मुठिया रोटी।
महर-म‌हर ममहाये वो,
मोर छत्तीसगढ़ के माटी।।

गैस ले बड़ सुघ्घर संगी,
चूल्हा के भात खवाथे।
घाम के दिन बादर म,
आमा के चटनी ह भाथे।।
मटर-पनीर नी मिलय,
पाबे किसम-किसम के भाजी।
महर-म‌हर ममहाये वो,
मोर छत्तीसगढ़ के माटी।।

इस्कुल ले आतेच लईका,
गुल्ली-डंडा धरके भागे।
परय नी रतिहा नींद टूरा के,
काहानी सुनेबर जागे।।
बेट-बाॅल, फुटबाॅल कहाँ,
इहाँ खेलय भऊँरा-बाँटी।
महर-म‌हर ममहाये वो,
मोर छत्तीसगढ़ के माटी।।

बरदी आये के बेरा ल‌ई‌का,
गाय-बछरू धरेबर भागे।
जाड़ घरी म जम्मो झन,
गोरसी म आगी तापे।।
संधकेरहे बेरा म नोनी,
बारे दिया अऊ बाती।
महर-म‌हर ममहाये वो,
मोर छत्तीसगढ़ के माटी।।

पुष्पराज साहू
बोईरगाँव-छुरा (गरियाबंद)

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याहा काय जाड़ ये ददा

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समझ नइ आवत हे,याहा काय जाड़ ये ददा…!
जादा झन सोच,झटकुन भुररी ल बार बबा…!
अपने अपन कांपाथे,हाथ गोड़…!
चुपचाप बइठ,साल ल ओड़…!
कोन जनी कती,घाम घलो लुकागे हे…!
मोला तो लागत हे,उहू ह जडा़गे हे…!
आज नइ दिखत हे,चंवरा म बइठइया मन…!
रउनिया तपइया,रंग-रंग के गोठियइया मन…!
बइरी जाड़ ह,भारी अतलंग मचावत हे…!
सेटर,कथरी म घलो,आहर नइ बुतावत हे…!
पारा,मोहल्ला होगे,सुन्ना-सुन्ना…!
डोकरी दाई चिल्लावत हे,सेटर होगे जुन्ना…!
गोरसी म दहकत हे,आगी अंगरा…!
बइठे बर घर म,होवत हे झगरा…!
डोकरा बबा घेरी-भेरी,चुल्हा ल झाकत हे…!
चाय पीये बर मन ह,ललचावत हे…!
हवा घलो बिहनिया ले,अलकरहा धुकथे…!
नहवइ घलो लेद दे होगे,थोरको नइ रूकथे…!
काला गोठियाबे ग,तोरो-मोरो सबके उही हाल…!
पीरा कतका बतांवा संगी,जीना होगे बेहाल…!

केशव पाल
मढ़ी (बंजारी) सारागांव,
तिल्दा-नेवरा रायपुर [छ.ग.]
9165973868
Keshavpal768@gmail.com

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मदरस कस मीठ मोर गांव के बोली

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संगी – जहुरिया रहिथे मोर गांव म
हरियर – हरियर खेती खार गांव म
उज्जर – उज्जर इहां के मनखे ,मन के आरुग रहिथें गांव म
खोल खार हे सुघ्घर संगी
बर ,पीपर के छांव हे संगी
तरिया – नरवा अऊ कुंआ बारी
गांव के हावे ग चिन्हारी
किसिम – किसिम के इहां हावे मनखे
सुख – दुख के इहां हावे साथी
गांव म दिखथे ग मया – दुलार
दाई – ददा के चोहना बबा के डुलार
तुलसी के चौरा म
मंदिर के दुवार म
दुख पीरा गोहराथन
छोटे बड़े के हावे ग पहचान गांव म
चन्दन बरोबर मोर गांव के धूल
मदरस कस मीठ मोर गांव के बोली
कइसे बताववं का गोठियाववं ग
मोर चिन्हारी मोर गांव के नाम ले हे ग
मदरस कस मीठ मोर गांव के बोली ग

लक्ष्मी नारायण लहरे ” साहिल ”
कोसीर सारंगढ़

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डर

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सोंचथौं,
कईसे होही वो बड़े-बड़े बिल्डिंग-बंगला,
वो चमचमावत गाड़ी,
वो कड़कड़ावत नोट,
जेखर खातिर,
हाथ-पैर मारत फिरथें सब दिन-रात,
मार देथें कोनों ला नइ ते खुद ला?
अरे!
वो बिल्डिंग तो आवे
ईंटा-पथरा के, कांछ के,
वो कार तो आवै लोहा-टीना के,
अउ
कागज के वो नोट, वो गड्डी आवै।
वो बिल्डिंग
आह! डर लगथे के खा जाही मोला,
वो कार,
डर लगथे,
वो जाही मोरे उपर सवार,
डर लगथे
पागल बना दिही मोला वो पइसा।
डर लगथे
निरजीव ईंटा-पथरा,
कांछ, लोहा-टीना,कागज के बीच घिर के,
निरलज्ज, निरजीव झन हो जाय मनखे।

केजवा राम साहू ‘तेजनाथ‘
बरदुली, पिपरिया, कबीरधाम
7999385846

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कविता : नवां अंजोर अउ जाड़

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नवा अंजोर आही
एकर अगोरा हे,
मोर छत्तीसगढ़ धान के
कटोरा हे।

जुन्ना गइस सरकार,
राज सुघ्घर चलाइस हे,
नवा सरकार ह उजयारी
के सपना देखाइस हे।

अब सपना के पूरा होवत ले अगोरबो
परजा तन्त्र निक हे सबला परखबो।

तुंहर भी जय हो हमरो घलो जय हो
लोगन के सेवा आगु जम्मो के विजय हो।

जाड़

अबड़ लागत हे जाड़ संगी
हाड़ा कपकपात हे।
आँखि नाक दुनो कोती ले
पानी ह बोहात हे।।
अंगेठा सिरा गे भुर्री बुझागे
रजाई के भीतरी खुसर के
नींद ह भगागे।।
संम्पन्नता के स्वेटर ह
गोदरी ल् बिजरात हे
गरीब मर के सड़क म
इंसानियत शरमात हे
कोनो के थाली म सीथा नई हे
कोनो महफ़िल म वो फेकात हे
कोनो जगह पानी नई हे
कोनो जगह मदिरा बोहात हे
तिल तिल के मरत इंसानियत ह
त कोनो रास रंग मनात हे

अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा

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नवा साल मं

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महिना के का हे संगी हो?
आत रइही-जात रइही,
जनवरी,फरवरी…।
साल के का हे संगी हो?
आत रइथे-जात रइथे ये तो,
…..दू हजार अठारा,
दू हजार अठारा ले दू हजार ओन्नईस,
ओन्नईस ले बीस,बीस ले….।
बदलत रईही कलेंडर घलोक।
महत्तम के बात हे संगवारी हो,
हमर नइ बदलना।
संगी हो,
हमन मत बदलिन,
हमर पियार झन बदलै,
हमर संस्कार झन बदलै,
जीए के अधार झन बदलै।

केजवा राम साहू ‘तेजनाथ‘
बरदुली,कबीरधाम (छ.ग. )
7999385846

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मोर दाई छत्तीसगढ़

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मैं तोर दुःख ल काला बताओ ओ
मोर दाई छत्तीसगढ़
तोर माटी के पीरा ल
कति पटक के आओ मोर दाई छत्तीसगढ़।

कइसन कलपत हे छत्तीसगढ़ीया मन,
अपन भाखा ल बगराये बर
सुते मनखे ल कइसे मैं
नींद ले जगाओ ओ मोर दाई छत्तीसगढ़।

मोर भुइँया म नवा अंजोर के आस हे
तभो ले छत्तीसगढ़ी भाखा के हाल ह बढ़ बेहाल हे।
कई ठन बोली भाखा इहा करत राज हे,
छत्तीसगढ़ी भाखा के बने जीके जंजाल हे।

छत्तीसगढ़िया अपना महतारी भाखा बर,
करत कतका परयास हे,
तभो ले समझे नइ अउ मनखे मन
कोन जानी का इखर विचार हे।

अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर
छत्तीसगढ़
मो न.- 7722 906664

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जाड़ के महीना

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आ गे जाड के महीना , हाथ गोड जुडावत हे ।
कमरा ओढ के बबा ह , गोरसी ल दगावत हे ।
पानी ल छुत्ते साठ , हाथ ह झिनझिनावत हे ।
मुहूं म डारते साठ , दांत ह किनकिनावत हे ।
तेल फुल चुपर के , लइका ल सपटावत हे ।
कतको दवई करबे तब ले , नाक ह बोहावत हे ।
नावा बहुरिया घेरी बेरी , किरिम ल लगावत हे ।
पाउडर ल लगा लगाके , चेहरा ल चमकावत हे ।
गाल मुहूँ चटकत हावय , बोरोप्लस लगावत हे ।
एड़ी हा फाट गेहे , अब्बड़ के पीरावत हे ।
आगे जाड़ के महीना , हाथ गोड़ जुड़ावत हे ।
कमरा ओढ के बबा ह , गोरसी ल दगावत हे ।

महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक)
पंडरिया (कवर्धा)
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com

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नवा बछर के मुबारक हवै

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जम्मो झन हा सोरियावत हवै, नवा बछर हा आवत हवै।
कते दिन, अऊ कदिहा जाबो, इहिच ला गोठियावत हवै।।
जम्मो नौकरिहा मन हा घलो, परवार संग घूमेबर जावत हवै।
दूरिहा-दूरिहा ले सकला के सबो, नवा बछर मनावत हवै।।

इस्कूल के लईका मन हा, पिकनिक जाये बर पिलानिंग बनावत हवै।
उखर संग म मेडम-गुरूजी मन ह, जाये बर घलो मुचमुचावत हवै।।
गुरूजी मन पिकनिक बर लइका ल, सुरकछा के उदिम बतावत हवै।
बने-बने पिकनिक मनावौ मोर संगी, नवा बछर ह आवत हवै।।

नवा बछर के बेरा म भठ्ठी म, दारू के खेप हा आवत हवै।
दारू पियईया भईया मन घलो, पी के नवा बछर मनावत हवै।।
इही दारू के सेतिन घलो त, दुरघटना हा अब्बड़ होवत हवै।
दारू पियई ल अब छोड़ देवौ संगी, नवा बछर ह आवत हवै।।

मास-मछरी के खवईया मन ह, कुकरी बोकरा ला पुजवावत हवै।
निरबोध जिनिस मन के बलि चघाके, अपन ल धन्य कहावत हवै।।
इही मास-मछरी खाय के सेतिन, जम्मो चिरई-चिरगुन ह नंदावत हवै।
साग-भाजी ल अपनावौ संगी हो, नवा बछर ह आवत हवै।।

जम्मो झन ह खुश हे अब्बड़, फेर किसान भाई मन के मुड़ी पिरावत हवै।
कब, का हो जाहि नवा बछर म, उखरेच चिनता सतावत हवै।।
भगवान् ले करथौ इहिच बिनती, जम्मो लईका-सियान ह मुचमुचावत रहै।
“राज” डाहर ले जम्मो झन ल संगी, नवा बछर के मुबारक हवै।।

पुष्पराज साहू
छुरा (गरियाबंद)

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बेरोजगारी

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दुलरवा रहिथन दई अऊ बबा के, जब तक रहिथन घर म।
जिनगी चलथे कतका मेहनत म, समझथन आके सहर म।।
चलाये बर अपन जिनगी ल, चपरासी तको बने बर परथे।
का करबे संगी परवार चलाये बर, जबरन आज पढ़े बर परथे।।

इंजीनियरिंग, डॉक्टरी करथे सबो, गाड़ा-गाड़ा पईसा ल देके।
पसीना के कमई लगाके ददा के, कागज के डिग्री ला लेथे।।
जम्मो ठन डिग्री ल लेके तको, टपरी घलो खोले बर परथे।
का करबे “राज” ल नौकरी बर, जबरन आज पढ़े बर परथे।।

लिख पढ़ के लईका मन ईहाॅ, बेरोजगारी म ठेलहा सब घूमत हे।
अऊ सबला पियाके देशी दारू, सरकार ह खुदे झूमत हे।।
चलाये बर जिनगी 12वीं पास ल, दारू के ठेका ले बर परथे।
का करबे संगी परवार चलाये बर, जबरन आज पढ़े बर परथे।।

घाम पियास म करथे किसानी, हमर दुनिया के भगवान ह।
तभो ले दारू महँगा बेचाथे, बोनस घलो नई पावे किसान ह।।
कभु-कभु त कर्जा के मारे, आत्महत्या घलो करे बर परथे।
का करबे संगी परवार चलाये बर, जबरन आज पढ़े बर परथे।।

पुष्पराज साहू
छुरा (गरियाबंद)

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नवा पहल 2019

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1.
नवा बसर मा नवा पहल होवय, मनखे परान परबल होवय।
शुभ चरितर अऊ सबो के भविष्य उज्जर होवय।।
नवा बसर मा नवा पहल होवय।

2.
मया मेहनत के पानी मा,
चीखला होवय ,माटी मा।
ऊपर तो फूलै खोखमा, पानी पवितर जल होवय।
नवा बसर मा नवा पहल होवय।

3.
टमडे़ ला झन परय कोनो जघा,
जगमग देवारी घर अंगना।
घपटे अंधियार झन टिकय झोपड़ी चाहे महल होवय।।
नवा बसर मा नवा पहल होवय।

4.
नवा धरती नवा अगास
नवा बिहनिया के हे आस
नवा-नवा सब बागबगिया
नवा – नवा फसल होवय।
नवा बसर मा नवा पहल होवय।

5.
नवा नवा महल अटारी
जस सबरी के सजे दुवारी
परतिच्छा के गुरतुर फर, सुदामा कस अटल होवय नवा बसर मा नवा पहल होवय।

6.
बड़का जिनगानी सहजे सरल,
मेहनत घी शक्कर के मीठा फर
सब के अंतस निर्मल बोहावत पवितर गंगा जमुन जल होवय।।
नवा बसर मा नवा पहल होवय।

7.
सबो झन सुखी, रहय सब निरोग।
मिटय जलन छल कलेश के भोग।।
दुखिया के सब दुख टरय सुख सब छल छल होवय नवा बसर मा नवा पहल होवय।

8.निरूत्तर बोकबाय काबर।
पेरय जेन अनथक जांगर
कड़क दुभ्भर सब प्रस्न के
कोनो न कोनो हल होवय नवा बसर मा नवा पहल होवय।

माधोलाल चन्द्राकर
वार्ड क्रं. 17 कादंबरी नगर
दुर्गा मंदिर के पास दुर्ग
जिला-दुर्ग (छ.ग.)
मो. नं. 9406062526

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फैसन के जमाना

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फैसन के जमाना आगे,
आनी बानी फैसन लगावत हे।
छोकरी-छोकरा ला का कहिबे,
डोकरी डोकरा झपावत हे।।

उमर होगे हे अस्सी साल,
अऊ मुंड़ी मं डाई लगावत हे।
अजब-गजब हे डोकरी मन के चाल,
मुंहूं मं लिबिस्टीक लगावत हे।।
छोकरी-छोकरा ला का कहिबे,
डोकरी-डोकरा झपावत हे।
फैसन के जमाना आगे,
आनी-बानी फैसन लगावत हे।।

आज काल के नव युवक मन,
सिकरेट पैनामा जमावत हे।
कईसने डिजाइन के ओ पैंट पहिरे हे,
माड़ी के आवत हे बोचकावत हे।।
कोन जनी ओ चड्डी नइ पहीरे रतीस ता का होतीस,
थोरको सरम नइ आवत हे।
फैसन के जमाना आगे,
आनी बानी फैसन लगावत हे।।

डोकरा मन के घलो जवानी छागे,
टुरी मन ला देखके मेछरावत हे।
टुरी मन घलो कम नइ हे,
जींस टाऊजर लगावत हे।।
आँखी मं पहीरे हे करीया चस्मा,
अऊ स्कूटर ला कुदावत हे।
फैसन के जमाना आगे,
आनी बानी फैसन लगावत हे।।

आज काल के बहुरीया मन,
थोरको नइ लजावत हे।
छोटे-बड़े के पहिचान नइ हे,
मुड़ी ला अपन ऊघारत हे।।
काहां चलदीस ओ संस्कृति अऊ मरीयादा,
आज मांटी मं मिलावत हे।
फैसन के जमाना आगे,
आनी बानी फैसन लगावत हे।।
छोकरी-छोकरा ला का कहिबे,
डोकरी-डोकरा झपावत हे।
फैसन के जमाना आगे,
आनी बानी फैसन लगावत हे।।

गोकुल राम साहू
धुरसा-राजिम (घटारानी)
जिला-गरियाबंद (छत्तीसगढ़)
मो.9009047156

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सुग्घर हे मोर छत्तीसगढ़

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बड़ सुग्घर हे मोर छत्तीसगढ़,
चारों मुड़ा हरियाली हे।
जेती देखबे तेती संगी,
खुशहाली ही खुशहाली हे।।

बड़ भागी हन हमन भईया,
छत्तीसगढ़ मं जनम धरेन।
ईहें खेलेन कुदेन संगी,
ईहें खाऐ कमाऐन।।
बड़ सुग्घर हे मोर छत्तीसगढ़,
चारो मुंड़ा हरियाली हे।
जेती देखबे तेती संगी,
खुशहाली ही खुशहाली हे।।

छत्तीसगढ़ के मांटी मं भईया,
अजब गजब ओनहारी हे।
बर पिपर के सुग्घर छंईहां,
जुड़ चले पुरवाई हे।।
बड़ सुग्घर हे मोर छत्तीसगढ़,
चारो मुंड़ा हरियाली हे।
जेती देखबे तेती सुग्घर,
खुशहाली ही खुशहाली हे।।

होवत बिहनिया इहाँ भईया,
अंगना दुवारी बटोरावत हे।
बड़े बिहनिया ले इहाँ संगी,
कोईली सुर लमावत हे।।
बड़ सुग्घर हे मोर छत्तीसगढ़,
मया पिरीत के चिन्हारी हे।
जेती देखबे तेती संगी,
खुशहाली ही खुशहाली हे।।

लईका मन हां खेलथे भईया,
गुल्ली डण्डा अऊ बांटी हे।
चन्दन कस हे मोर मांटी संगी,
सुग्घर जंगल झांड़ी हे।।
बड़ सुग्घर हे मोर छत्तीसगढ़,
चारो मुंड़ा हरियाली हे।
जेती देखबे तेती संगी,
खुशहाली ही खुशहाली हे।।

गोकुल राम साहू
धुरसा-राजिम(घटारानी)
जिला-गरियाबंद(छत्तीसगढ़)
मों.9009047156

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सरसों ह फुल के महकत हे

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देख तो संगी खलिहान ल
सरसों ह फुल गे घम घम ल
पियर – पियर दिखत हे
मन ह देख के हरसावत हे
नावा बिहान के सन्देस लेके आये हे
नावा बहुरिया कस घुपघुप ल हे
हवा म लहरत हे
सुघ्घर मजा के दिखत हे
पड़ोसिन ह लुका लुका के भाजी ल तोरत हे
फुल के संग म डोलत हे
अगास ह घलो रंग म रंग गेहे हे
देखैया मन के मन मोहत हे
महर महर महकत हे
रसे रस डोलत हे
देख के मन ह हरसत हे
पियर – पियर दिखत हे
धरती ह सोन बरोबर दिखत हे
हिरदे के तार ल
कुलेचुप छेड़त हे
मने मन म फुलसुन्दरी
अपन पिया ल खोजत हे
सरसों के फूल ल टोर टोर के
मुँह म चुमत हे
घेरी बेरी पीछू ल देखत हे
दोपहरी के बेरा म
सज संवर के मने मन गुनत हे
पिया के सपना सँजोये
घेरी बेरी फूल ल चुमत हे

लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल”
कोसीर सारंगढ़

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समे-समे के बात

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बदलाव होवत रहिथे संगी,
जिनगी के सफर म,
कोनों धोका म झन रहै,
बपौती के,न अकड़ म।
काल महुँ बइठे रहेंव सीट म,
संगी,आज खड़े हौं,
कोनों बइठे हे आज, त झन सोचै,
के मैं फलाने ले बड़े हौं।

केजवा राम साहू ‘तेजनाथ’
बरदुली, कबीरधाम, छ ग.
7999385846

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